ऐ दोस्त, काफ़ी दिन हुए तुमसे बात किए हुए।
या यूँ कहूँ,
काफ़ी दिन हुए तुमसे दिल की बात किए हुए।
कभी सोचती हूँ, शायद नाराज़ हो मुझसे
पर सोचो तो, नाराज़ होने के लिए बात ही कहाँ हुई है हमारी
पर पहले नाराज़ होने के लिए यह भी काफ़ी होता था ना,
‘ ना बात करना ‘
फिर सोचती हूँ क्या बात करेंगे?
वहीं रोज़मर्रा की बातेँ?
ज़िंदगी का हाल…
पर पहले, इन्हीं बातों से तो कितनी यादें बनाई थी हमने,
ज़िंदगी बनाई थी!
फिर सोचती हूं, वक़्त नहीं होगा तुम्हारे पास
अच्छा बहाना है ना, ‘वक़्त ना होना’! सभी के पास है
लेकिन पहले तो कभी कमी नहीं थी,
ना वक़्त की, ना बातों की।
कभी सोचती हूँ जान लूँ तुम्हारा हाल, सोशल मीडिया से ,
सारी दुनिया की ख़बर है उसे!
पर एक परछाई से कैसे पूछूँ?
कैसे हो?
ऐ दोस्त,
काफ़ी दिन हुए तुमसे दिल की बात किए हुए।
सोचती हूँ, आज कर ही लूँ…